जब संघरक्षितजी से पहचान हुई, योगी चेन (1906-1987) कलिम्पोंग में रहने वाले एक तपस्वी थे. पहले वे हाई स्ट्रीट में एक छोटे से कमरे में रहते थे, लेकिन बाद में बाज़ार के नीचे एक बंगले में रहने लगे, जिसका नाम उन्होंने ‘द फाइव लेग्युमिनस ट्री हर्मिटेज’ ('पांच फलीदार वृक्ष आश्रम') रखा था.  कुल मिलाकर, उन्होंने आश्रम में सत्रह साल बिताए, केवल अपने निवास को बदलने के अवसर पर ही उन्होंने घर के बाहर कदम रखा था. अपना अधिकांश समय वे विभिन्न ध्यानों में बिताया करते थे. हर दिन तीस मिनट लेखन के लिए भी समर्पित किए थे. इस तरह कार्य करते हुए उन्होंने अंग्रेजी और मांदरिन दोनों भाषाओं में शिक्षाओं और कविताओं की काफी पुस्तकें लिख दी थी. उन्होंने सप्ताह के एक विशिष्ट दिन आगंतुकों को मिलने एक घंटे या उससे अधिक समय की अनुमति दे रखी थी. तीन या चार वर्षों में संघरक्षितजी को जानने के बाद, उन्होंने 1962 की गर्मियों में संघरक्षितजी और उनके मित्र भिक्खु खंतीपालो (जिन्होंने बाद में नोबल फ्रेंडशिप, विंडहॉर्स पब्लिकेशन्स, बर्मिंघम 2002 में अपने ईन अनुभवों के बारे में लिखा है.) को बौद्ध ध्यानसाधना के समुचे क्षेत्र पर व्याख्यानों की एक श्रृंखला देने का फैसला किया था.  यह व्याख्यान बाद में पुस्तक के रूप में बुध्दिस्ट मेडिटेशन- सिस्टिमैटिक अैंड प्रॅक्टिकल (बौद्ध ध्यान, व्यवस्थित और व्यावहारिक) के नाम से  प्रकाशित हुए, जो तब से छप रहे हैं.

 
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"योगी चेन, जैसा कि उन्हें जाना जाता था, बौद्ध और हिंदू परंपरा के तपस्वी, क्षीण योगी से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे. वे छोटे कद के और मोटे थे, उनके गोल-मटोल चेहरे पर अक्सर एक बड़ी मुस्कान रहती थी, और हालाँकि अब वे युवा नहीं थे, लेकिन स्वस्थ और ऊर्जावान दिखते थे. ... मुझे पता चला कि वे कभी भी 'पांच फलीदार वृक्ष आश्रम' से बाहर नहीं निकलते थे, जैसा कि वे अपने छोटे से बंगले को कहते थे ... वे पूरा दिन ध्यान में बिताते थे, सिवाय उस आधे घंटे के जो वे साहित्यिक कार्यों को समर्पित करते थे." 

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol. 22, p.532-3

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बुध्दिस्ट मेडिटेशन- सिस्टिमैटिक अैंड प्रॅक्टिकल ('बौद्ध ध्यान: व्यवस्थित और व्यावहारिक') का पहला संस्करण 

"कभी-कभी, उनकी अनुमति से, मैं किसी को उनके पास ले जाता था, और इस तरह 1962 की गर्मियों में एक दोपहर देर से मैं अकेले नहीं बल्कि खंतीपालो के साथ पाँच फलीदार वृक्षों वाले आश्रम में गया था.

 "हम तीनों ने शायद ध्यान पर चर्चा की, क्योंकि या तो इसी अवसर पर, या उसके तुरंत बाद, योगी चेन ने खंतीपालो और मुझे इस विषय पर एक व्याख्यान देने का बीड़ा उठाया था. चाहे यह उनका अपना विचार था, या उनके दो पीले वस्त्रधारी आगंतुकों के अनुरोध का परिणाम था, मुझे अब याद नहीं है. जो भी हो, यह व्याख्यान बहुत लंबा साबित हुआ. इसे साप्ताहिक किश्तों में, चार महीने से अधिक की अवधि में दिया गया था, और पाँच साल बाद यह पुस्तक के रूप में बुध्दिस्ट मेडिटेशन- सिस्टिमैटिक अैंड प्रॅक्टिकल बौद्ध योगी सी.एम. चेन के व्याख्यान इस नाम से  प्रकाशित हुआ था.  "

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.533

 

संघरक्षितजी के लिए योगी चेन के नोट्स

जब संघरक्षितजी योगी चेन से उन वर्षों के दौरान मिले, जब वे कलिम्पोंग में थे, तो उनकी बातचीत लगभग हमेशा धर्म के संबंध में होती थी, जिसमें योगी चेन अक्सर सूत्रों कें विभिन्न बिंदुओं को स्पष्ट करने और ध्यान से जोड़ने की कोशिश करते थे. चर्चा समाप्त होने के बाद भी, योगी चेन अक्सर अपने विषय पर अधिक स्पष्टिकरण और विस्तार से नोट्स के पन्ने लिखते थे. यह ऐसा ही एक पन्ना है.

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योगी चेन की माला

योगी चेन ने संघरक्षितजी को अपनी माला उपहार में दी थी. कई वर्षों बाद माला टूट गई और कुछ मालाएँ अलग करके संघरक्षितजी के त्रिरत्न बौद्ध संघ के दो शिष्यों को दे दी गईं. उन्होंने पाँच मोतियों को एक कांच के जार में रखा और 1980 के दशक के अंत में किसी समय सुवज्र को दे दिया. शेष मोतियों को एक साथ पिरोकर यह माला बनाई गई, जिसे संघरक्षितजी ने 1990 के नए साल के दिन परमार्थ को उपहार के रूप में दे दिया था. सुवज्र और परमार्थ को संयोग से ही पता चला कि उनके पास ऐसे मोती हैं जो मूल रूप से योगी चेन की माला से आए थे.

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योगी चेन का पत्र, जून 1961

“मेरे प्रिय धर्मबंधू रेव्ह. संघरक्षित

क्या आपके गले की तकलीफ ठीक हो गई है? क्या आप उस रात अकेले सुरक्षित वापस पहुंच गए थे?…”

वर्ष 1961 के मानसून के मौसम में लिखे गए इस मार्मिक छोटे से पत्र में योगी चेन ने सुवर्ण भाषोत्तम सूत्र को पढ़ने की सलाह दी है, जिसमें जापानी परंपरा का हवाला देते हुए इसे जोर से पढ़ने और अच्छे मौसम के लिए प्रार्थना करने की बात कही गई है. उन्होंने इस बात पर भी खेद व्यक्त किया कि पिछली मुलाकात में, समय की कमी और संघरक्षितजी के घर देर से लौटने की चिंता के कारण, उन्होंने, श्री चेन ने, धर्म प्रचार के विषय पर अपना प्रवचन पूरी तरह से पूरा नहीं किया था.

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