दुज्जोम दोर्जे खाचोद (काचू) तुलकु (1920-1981).  सिक्किम में सत्रहवीं सदी के ‘प्रमुख’ मठों में, पेमायांग्त्से गोम्पा, अर्थात ‘शानदार कमल का मठ’ था, जिसे कभी-कभी ‘शाही मठ’ भी कहा जाता है. काचू तुलकु उसके प्रमुख थे. हालाँकि खाचोद तुलकु को न्यिंगमा लामा माना जाता था, लेकिन संयोगवश उन्हें तिब्बत में एक छोटे गेलुग्पा गोम्पा में सात साल की उम्र से लेकर लगभग इक्कीस साल की उम्र तक शिक्षा मिली थी. उस समय तक वे उमजें या ‘मंत्र नेता’ और गोम्पा के वरिष्ठ प्रशासक दोनों थे. य़ह अनुभव बाद में उन्हें पेमायांग्त्से के मठाधीश के रूप में काम आया था. वे सिक्किम में जम्यंग खेंत्से रिम्पोचे के वरिष्ठ शिष्य थे और उनके प्रोत्साहन पर उन्होंने अपने गुरु से जो कुछ सीखा था, उसका कुछ हिस्सा संघरक्षितजी को दे दिया. वे बहुत विनम्र लामा थे, ध्यान के प्रति समर्पित थे, और अपने दूरदर्शी सपनों को बहुत गंभीरता से लेते थे. 21 अक्टूबर 1962 को पद्मसंभव दीक्षा देते समय उन्होंने संघरक्षितजी को 'उर्ग्येन' नाम दिया था.

 
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"काचू रिम्पोछे एक हंसमुख, सीधे-सादे, व्यावहारिक व्यक्ति थे... निस्संदेह बहुत ज्ञानी... एवर्टन विला में हुई मुलाकात ने मुझे उनसे पहले से कहीं ज़्यादा प्रभावित किया था. वे पश्चिमी सिक्किम में रह रहे थे और मैं कलिम्पोंग में रहता था फिर भी मैं उनसे मिलना जारी रखने के लिए उत्सुक था. हमारे विचार बहुत ज्यादा मिलते थे, जिसके परिणामस्वरूप बाद के वर्षों में हम कई बार मिले और वे मेरे जीवन में एक मित्र और शिक्षक के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान पर आ गए."

In the Sign of the Golden Wheel, The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.327–8

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थारपे देलम तिब्बती पाठ

मुक्ति का सुगम मार्ग नामक यह पाठ  निंगमा परंपरा से नोंन्द्रो या मूलभूत साधनाओं के व्यापक रचना-संच की रूपरेखा प्रस्तुत करता है. जिन प्रतिमाओं पर ध्यान किया जाता है उनमें गुरु रिम्पोचे अर्थात पद्मसंभव, भारत के महान तांत्रिक योगी थे जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. उस समय से, गुरु रिम्पोचे का विभिन्न रूपों में ध्यान किया जाता रहा है. ये लकडे के छाप से छपी गई मूल प्रतियाँ हैं जिनका उल्लेख यहाँ किया गया है:

“एक आदमी, जो शायद शरणार्थी था, सड़क के किनारे बैठा हुआ था और उसके सामने एक बोरी पर कुछ सामान फैला हुआ था. उनमें से एक सामान लकडे के छाप से छपी गई तिब्बती पन्नों का एक बंडल था. चूँकि वह आदमी उनके लिए केवल कुछ रुपये माँग रहा था, मैंने आवेग में आकर उन्हें खरीद लिया, हालाँकि मैं उन्हें पढ़ नहीं सकता था और मुझे नहीं पता था कि उसमें क्या है. विहार में वापस आकर मैंने उन्हें तुरंत काचू रिम्पोछे को दिखाया. उन्होंने मुझे बताया कि वे सभी न्यिंगमा ग्रंथ थे. और पद्मसंभव दीक्षा प्राप्त करने के तुरंत बाद वह मुझे मिल गया यह एक बहुत ही शुभ संकेत था. खास बात तो यह थी की उसमें सबसे लंबा ग्रंथ प्रसिद्ध थारपे देलम याने 'मुक्ति का सुगम मार्ग' था.

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.474

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थारपे देलम के टाइप किए गए नोट्स


“अपने प्रस्थान से पहले रिम्पोचे ने मुझे शरण-गमन और प्रणिपात अभ्यास के बारे में और निर्देश दिए. मुझे 20,000 प्रणिपात करना था, हालाँकि 100,000 की अपेक्षा की जाती है. उन्होंने मुझे धार्दो रिम्पोचे की मदद से थारपे देलम का अंग्रेजी संस्करण बनाने की भी अनुमति दी.


“मुझे पता था कि काचू रिम्पोचे निंगमा पंथ से संबंधित थे, और धार्दो रिम्पोचे गेलुग पंथ से. दोनों पंथों के बीच एक निश्चित मात्रा में प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन फिर भी मुझे थारपे देलम, एक निंगमा पाठ का अंग्रेजी संस्करण बनाने में धार्दो रिम्पोचे की मदद मांगने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई.  एक तो हम दोस्त थे, और मैं जानता था कि वह सांप्रदायिक भाव से मुक्त थे. और उनकी वंशावली में उनके तत्काल पूर्ववर्ती तुल्कु के समय तक वे  न्यिंगमा थे.… इसलिए वह मेरे काम में मेरी मदद करने के लिए तुरंत सहमत हो गए. अगले कुछ महीनों के दौरान हमने इस परियोजना पर एक साथ काम करते हुए कई घंटे बिताए, अंततः उस रहस्यमय तिब्बती पाठ का एक कच्चा अंग्रेजी संस्करण तैयार कर लिया.” 


Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.474

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मंडल सेट


संघरक्षितजी के इस मंडल सेट का उपयोग मूल योग के थारपे देलम पाठ के अनुसार से ध्यान और पूजाविधि के दौरान किया जाता है. धर्म की शिक्षा देने और इसे युगों-युगों तक जीवित रखने के लिए बुद्ध और महान गुरुओं के प्रति कृतज्ञता में,  कल्पनाशील रूप से संपूर्ण ब्रह्मांड को उन्हें अर्पित किया जाता है.

पद्मसंभव के आठ रूपों के थांग्का

नीचे दिखाए गए तीन थांग्का पद्मसंभव के आठ अलग-अलग रूपों या अभिव्यक्तियों के एक पूर्ण पारंपरिक सेट से हैं, जिन्हें उर्ग्येन संघारक्षितजी ने कलिम्पोंग में एक तिब्बती भिक्षु से खरीदा था.

तिब्बत में धर्म की दृढ़ स्थापना के लिए सबसे प्रसिद्ध  महान गुरु पद्मसंभव के जीवन के वृत्तांतों में कई पौराणिक प्रसंग हैं. प्रत्येक थांग्का एक अलग प्रसंग को दर्शाता है जिसमें गुरु या तो क्रोध या शांति, भिक्षु या योगी के रूप में, बुद्ध या रक्षक के रूप में प्रकट होते हैं. ये कहानियाँ और विभिन्न अभिव्यक्तियों की छवियाँ मिलकर पद्मसंभव, 'गुरु रिम्पोचे' के बहुआयामी चरित्र की एक पूर्ण और समृद्ध तस्वीर बनाती हैं.

“कचू रिम्पोचे के लिए गुरु रिंपोचे सिर्फ़ एक ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं थे, न ही मिथक या किंवदंती का पात्र; वे एक आध्यात्मिक वास्तविकता थे, और एक आध्यात्मिक वास्तविकता के रूप में ही उन्होंने उन्हें अनुभव किया जब उन्होंने 21 अक्टूबर 1962 को मुझे पद्मसंभव अभिषेक दिया था.

“इस समय तक दार्जिलिंग में तमांग बौद्ध गोम्पा की मेरी पहली महत्वपूर्ण यात्रा को बारह साल हो चुके थे, और तिबेटन बुक ऑफ़ द ग्रेट लिबरेशन को पढ़े हुए आठ साल हो चुके थे. हालाँकि गुरु रिम्पोचे  मेरे लिए अभितक आध्यात्मिक वास्तविकता नहीं थे, जैसा कि वे कचू रिम्पोचे के लिए थे, लेकिन कम से कम मुझे उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति का एहसास होने लगा था.”

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.472

Pema Jungné thangkaHere Padmasambhava is represented in the form of a pandit (or learned one) named Pema Jungné or ‘Lotus-born’. His right hand seems to be in the mūdra of bestowal, presumably bestowing wisdom, represented by the wisdom nectar in the skull-cup in his left hand. He wears the traditional pandit’s hat of one who has accomplished understanding of all the Dharma texts and has all the skill to communicate his understanding.

पेमा जुंगने थांग्का

यहाँ पद्मसंभव को पेमा जुंगने या ‘कमल-जन्म’ नामक एक पंडित (या विद्वान) के रूप में दर्शाया गया है.  उनका दाहिना हाथ दान की मुद्रा में प्रतीत होता है, संभवतः ज्ञान प्रदान करते हुए, जिसका प्रतिनिधित्व उनके बाएँ हाथ में खोपड़ी के प्याले में ज्ञान अमृत के द्वारा किया जाता है. वे पारंपरिक पंडित की टोपी पहनते हैं, जो एक ऐसे व्यक्ति की होती है जिसने सभी धर्म ग्रंथों की समझ हासिल कर ली है और अपनी समझ को संप्रेषित करने का पूरा कौशल रखता है.

Shakya Senge thangkaHere Padmasambhava manifests in fully Enlightened form as a Buddha and is called Guru Shakya Senge or ‘Lion of the Śākyas’. He is depicted in monastic robes with a begging bowl in his left hand. The right hand often holds a vajra but here, emphasising his connection to Śākyamuni, the right hand is in ‘earth-touching’ mūdra.

शाक्य सेंगे थांग्का

यहाँ पद्मसंभव पूर्णतः प्रबुद्ध अर्थात बुध्द के रूप में प्रकट होते हैं और उन्हें गुरु शाक्य सेंगे या ‘शाक्यों का सिंह’ कहा जाता है. उन्हें भिक्षु का चिवर पहने हुए दिखाया गया है और उनके बाएँ हाथ में भिक्षापात्र है. दाएँ हाथ में अक्सर वज्र होता है, लेकिन यहाँ, शाक्यमुनि से उनके संबंध पर ज़ोर देते हुए, दायाँ हाथ ‘भूमि-स्पर्श’ मुद्रा में है.

Dorje Drolod thangkaHere Padmasambhava manifests in a wrathful form to subdue the arrogant and violent spirits of the Himalayan region. He rides upon a lactating tigress, a manifestation of one of his female disciples, who has devoted herself to support his taming of unruly forces inimical to the Dharma.

दोर्जे ड्रोलोद थांग्का

यहाँ पद्मसंभव हिमालय क्षेत्र की अहंकारी और हिंसक दैत्यों को वश में करने के लिए एक क्रोधी रूप में प्रकट होते हैं. वह एक दूध पिलाने वाली बाघिन पर सवार होते हैं, जो उनकी एक महिला शिष्या का अवतार है, जिसने धर्म के प्रति शत्रुतापूर्ण अनियंत्रित शक्तियों को वश में करने में उनका साथ देने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है.

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