अधिष्ठान
य़ह विश्व के समुचे त्रिरत्न महासंघ का घर और संघरक्षितजी का समाधि स्थल है
अधिष्ठान पूरे त्रिरत्न संघ और आंदोलन का स्थान है. यह वह जगह है जहाँ दुनिया भर के लोग एक संघ करके मिल सकते हैं, धर्म का अध्ययन और ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं.
संघरक्षितजी की अपनी मूल दृष्टि ते ईसका निर्माण हुआ है. उनका मानना था कि हमारे आंदोलन के भविष्य में इसका महत्वपूर्ण स्थान है, जो एकता, प्रेरणा और मूलता का स्रोत प्रदान करता है. धर्म की अपनी विशेष प्रस्तुति को जीवित रखने के लिए प्राथमिक संसाधन के रूप में उन्होंने इसे देखा, जिसके अनुसार उनके शिष्यों और शिष्यों के शिष्यों को आचरण करना है.
यह कोई सरल या अपरिवर्तनिय चीज़ नहीं है, यह समय के साथ-साथ और अनुभव के बढ़ने के साथ विकसित हो रही है. संघरक्षितजी ने खुद कहा है कि उन्होंने चार वंशपरंपराएं अपने शिष्यों को सौंपी है: शिक्षाओं का वंश, आचरण-साधनाओं का वंश, जिम्मेदारियों का वंश और प्रेरणा का वंश. सबसे बढ़कर, इन चार वंशों को जीवित रखना और उन्हें भावी पीढ़ियों को सौंपना अधिष्ठान की ज़िम्मेदारी है.
निवासी आध्यात्मिक कुल में आंदोलन-व्यापी जिम्मेदारियाँ निभाने वाले लोग (पब्लिक प्रीसेप्टर्स के अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रिय संघ संगठक और अंतरराष्ट्रीय कौंसिल के संगठक) के साथ-साथ नियमित आयोजनों और आगंतुकों की सभी बुनियादी सुविधाओं और व्यावहारिक आवश्यकताओं से जुड़े लोग रहते हैं. यह आध्यात्मिक कुल संघरक्षितजी द्वारा अपने चार वंशों के माध्यम से की गई धर्म जीवन की प्रस्तुति तथा सके आचरण का उदाहरण लोगों के साथ साझा करने का काम करता है.
संघरक्षितजी के अंतिम वर्षों के दौरान, 30 अक्टूबर 2018 को उनकी मृत्यु तक, अधिष्ठान उनका घर रहा है. उन वर्षों के दौरान वे उर्ग्येन एनेक्सी के नाम से जाने जाने वाले अपार्टमेंट में रहते थे. यह पूरे स्थल के प्रवेश द्वार के पास कमरों और कार्यालयों का एक अपार्टमेंट था. उनकी उपस्थिति अधिष्ठान का 'आध्यात्मिक हृदय' था. कई लोग उनसे मिलने के लिए विशेष यात्रा करते थे, और उम्र के 90 के दशक में भी वे नियमित रूप से एक या दो आगंतुकों से प्रतिदिन मिलते थे. इस तरह, अधिष्ठान एक ऐसा स्थान बन गया था जहाँ लोग संघरक्षितजी से मिलने और उनसे जुड़ने के लिए आते थे.
समाधि स्थल (दफ़न टीला)
यदि आप संघरक्षित पुस्तकालय में खड़े हैं, और प्रांगण के ऊंचे मेहराब के पार खेतों को देखते है, आपको एक कम ऊंचाईवाला घास का टीला दिखाई देगा. इसके चारों और रास्तों और बगीचों की मंडल जैसी व्यवस्था की गई है, यह उर्ग्येन संघरक्षितजी का दफ़न स्थल है.
एक किंवदंती के अनुसार, जब बुद्ध से पूछा गया कि उनके अवशेषों पर किस तरह का स्मारक बनाया जाना चाहिए, तो उन्होंने चुपचाप, बस तीन चिवरोंं को मोड़कर एक चौकोर आधार बनाया, जिस पर उन्होंने अपना भिक्षापात्र उलटा रख दिया.
यही मूल आकार है जिसे दुनिया भर में बौद्ध स्मारकों में अंनंत रूप से विस्तृत किया गया है. वे न केवल महान बौद्ध शिक्षकों के अवशेषों के लिए स्मृति के रूप में काम करते हैं, बल्कि बुद्ध शाक्यमुनि के सम्यक संबोधि के प्रतीक के रूप में भी खड़े हैं.
अपने अंतिम वर्षों के दौरान संघरक्षितजी के साथ बातचीत में, यह स्पष्ट हुआ था कि उन्हें एक सुसम्पन्न स्मारक की कोई इच्छा नहीं थी. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें कोई प्राथमिकता देना हो, तो वह कुछ सरल होना चाहिए, कुछ ऐसा जो न केवल आरंभिक बौद्ध परंपरा की याद दिलाएं, बल्कि ब्रिटिश द्वीपों (टुमुली) के नवपाषाण और कांस्य युग के दफन टीलों को भी याद दिलाने वाला हो.
नवंबर 2018 की शुरुआत में उर्गेन संघरक्षितजी के अंतिम संस्कार में एक हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे. दफ़न के बाद, सुगंधित धूप के उमडते हुए बादलों के बीच सूरज के ढलने के साथ, कई लोगों ने मौन रहते हुए और लगातार दफन टीले की परिक्रमा की. यह परिक्रमा आज भी जारी है. और जारी रहेगी, तीन रत्नों के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने के लिए और संघरक्षितजी ने हमारे अनमोल संघ और आंदोलन को जो कुछ दिया है, उसके प्रति गहन सम्मान और हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए.
अपनी मृत्यु से कुछ महीने पहले, ब्लेक की नक्काशी, ‘डेथ्स डोर’ की एक प्रति देखने के बाद, संघरक्षितजी ने पूछा कि क्या मैं उनकी व्हीलचेयर को दफन स्थल तक ले जा सकता हूँ. वह तब अपने निर्माण के शुरुआती चरण में था. उन्होंने बाद में लिखा कि उन्हें ऐसा लग रहा था कि वे ब्लेक के बूढ़े की तरह अपनी ‘मृत्यु के द्वार’ पर खड़े हैं. इस चिंतन में कुछ भी विकृत नहीं था. बिलकुल नहीं. जैसा कि भंते लिखते हैं, "यह गर्मियों की एक सुहानी सुबह थी और मैं बाहर खुले में था, ताज़ी हवा और आस-पास के खेतों के नज़ारे का आनंद ले रहा था.”
परमार्थ