
उरग्येन संघरक्षित
संक्षिप्त जीवनी और हालिया फिल्म
त्रिरत्न बौद्ध महासंघ की स्थापना 1967 में फ्रेंडस् ऑफ दी वेस्टर्न बुध्दिस्ट ऑर्डर नामसे, एक अंग्रेज व्यक्ति संघरक्षित द्वारा की गई थी. भारत में, 1950 में, 25 वर्ष की आयु में वे बौद्ध भिक्षु करके दिक्षित हुए थे. वे कई वर्षों तक उत्तर-पूर्वी भारत के कलिम्पोंग में रहे. वहाँ उन्होंने कई प्रमुख बौद्ध परंपराओं के शिक्षकों के साथ अध्ययन किया. उन शिक्षकों में कुछ प्रमुख तिब्बती लामा भी थे. इस अवधि के दौरान, संघरक्षित उनके सांप्रदायिकता-विहिन दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हो गए. उनका दृष्टिकोण संपूर्ण बौद्ध परंपरा पर आधारित था. विशेष रूप से उनकी पुस्तक ए सर्वे ऑफ़ बुद्धिज़्म और महाबोधि के संपादक का कार्य इस प्रसिध्दि का कारण था.
1952 में संघरक्षित की मुलाकात डॉ. भीमराव अंबेडकर से हुई, जो हिंदू जाति व्यवस्था के अनुसार “अछूत” (या बाद की भाषा में ‘दलित’) के रूप में पैदा हुए थे. एक वकील के रूप में प्रशिक्षित होने के बाद वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और इसके संविधान के निर्माता बने. 1956 में डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म द्वारा दी गई पहचान छोडते हुए अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया. लेकिन कुछ सप्ताह बाद उनकी मृत्यु हो गई और उनके अनुयायी बिना मार्गदर्शक के रह गए. संघरक्षितजी ने नागपुर में शोकग्रस्त भीड़ के सामने कई भाषण दिए. वह शहर नागपुर ही था जहाँ सामूहिक धर्मांतरण हुआ था. उन्होनें बौद्ध होने का मतलब समझाया और उन्हें डॉ अंबेडकर की इच्छा का पालन करने के लिए बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया. कई वर्षों तक उन्होंने हर सर्दियों में मध्य भारत के शहरों और मैदानी क्षेत्रों का दौरा किया, व्याख्यान दिए और नए बौद्धों को अभी अभी अपनाएं धर्म को समझने और उसका अभ्यास करने में सहायता की.
ब्रिटेन के एक छोटे बौद्ध संघ के सदस्यों द्वारा आमंत्रित किए जाने पर, संघरक्षित 1960 के दशक के मध्य में ब्रिटेन लौट आए थे. अब जब वे पश्चिमी लोगों को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने शिक्षण और अभ्यास के ऐसे रूपों की आवश्यकता महसूस जो बुद्ध की शिक्षाओं को उन लोगों तक सबसे प्रभावी ढंग से पहुँचा सकें. इसका मतलब यह भी था कि उन्हें बुनियादी बातों पर वापस जाने की ज़रूरत पडी. बौद्ध धर्म के सभी रूपों में अंतर्निहित सिद्धांतों को देखना और यह पता लगाना कि उन्हें इस नए संदर्भ में कैसे सबसे अच्छे तरीके से लागू किया जा सकता है. इसलिए हमारा आंदोलन एक सार्वभौमिक आंदोलन है, जो किसी एक पारंपरिक शिक्षा और आचार से जुड़ा नहीं है, बल्कि बौद्ध प्रेरणा की पूरी धारा पर आधारित है.
1968 में संघरक्षितजी ने पश्चिमी बौद्ध संघ के भीतर पहला दीक्षा समारोह किया जो उनके नए बौद्ध आंदोलन का केंद्र बिंदु होना था. तब से आंदोलन और संघ ने खुद ही नई संरचनाएँ विकसित की हैं जो लोगों को 21वीं सदी में एक प्रामाणिक बौद्ध जीवन शैली के रूप में बुद्ध की शिक्षाओं को जीने में सहायक हैं. अब हमारे पास दुनिया भर के 27 देशों में बौद्ध केंद्र हैं जो गतिविधियाँ चला रहे हैं. अब यह सिर्फ़ एक पश्चिमी आंदोलन नहीं रहा, FWBO ने 2010 में अपना नाम बदलकर त्रिरत्न बौद्ध महासंघ कर लिया. त्रिरत्न का अर्थ है तीन रत्न. संघरक्षित इस बात पर ज़ोर देते हैं कि तीन रत्नों: बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में जाने के एक निश्चित कार्य के कारण ही बौद्ध परंपरा एकजुट है. यह त्रिरत्न बौद्ध महासंघ का केंद्रीय सिद्धांत या अभिविन्यास है, और हमारी सभी गतिविधियाँ इसके अर्थ में समझी जाती हैं. हमारे बौद्ध केंद्रों में हम ध्यान सिखाते हैं, साथ मिलकर बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं, कलाओं से जुड़ते हैं, जीवन भर एक-दूसरे को सहायता करते हैं, और अपने स्थानीय संघों में शामिल होते हैं.. हम उन परियोजनाओं को भी बढ़ावा देते हैं जिनमें बौद्ध लोग एक साथ रह सकें और काम कर सकें, तथा यह पता लगा सकें कि किस प्रकार हम अपने (अर्थार्जन के) काम को धम्म के आचरण में बदल सकते हैं.
2001 के आसपास, संघरक्षितजी की दृष्टि काफी कमज़ोर हो गई थी और अपने अंतिम वर्षों में उन्हें अनिद्रा की समस्या भी हुई. फिर भी, उन्होंने अपना साहित्यिक कार्य जारी रखा और सिखाने के अपने अंतिम चरण में प्रवेश किया. सुभूति (एक वरिष्ठ शिष्य) ने संघरक्षितजी के साथ साक्षात्कारों के आधार पर कई शोधपत्र लिखे, जिसमें उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति अपने दृष्टिकोण के मुख्य तत्वों को स्पष्ट किया. उनमें अन्य स्रोतों से प्रेरणा लेते हुए भी अपने दृष्टिकोण की बुनियाद ऐतिहासिक बुद्ध की शिक्षाओं पर रखना, कल्पना की भूमिका और बौद्ध आचरण के पराव्यक्तिगत स्वरुप को जिंदा रखते हुए ध्यान और धर्म आचरण के अन्य रूपों के लिए एक सुसंगत दृष्टिकोण प्रस्तुत करना, यह बातें शामिल है.
जो लोग संघरक्षितजी के छात्र, शिष्य और मित्र रहें हैं वे उन्हें मुख्य रूप से एक असाधारण उपस्थिति, मैत्री और बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति के रूप में याद करते हैं: एक अत्यंत बुद्धिमान और संवेदनशील व्यक्ति, जिसका दिमाग असाधारण रूप से मौलिक और स्वतंत्र था.
हालाँकि संघरक्षितजी के जीवन और व्यवहार के कुछ पहलुओं की आलोचना की गई. FWBO की स्थापना के बाद 1968 और 1985 के बीच वे अपने कुछ वयस्क पुरुष छात्रों के साथ यौन संबंध बनाने लगे. बाद के वर्षों में उनमें से कुछ छात्रों को लगा कि उन्होंने उन्हें निराश किया है, या उनके शिक्षक के रूप में उनके साथ यौन संबंध बनाना उनके लिए अनैतिक था. इन और अन्य चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत कुछ किया गया है, जिसके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: https://thebuddhistcentre.com/stories/ethical-issues/. इसके अलावा, अन्य परंपराओं के कुछ बौद्धों ने उनके द्वारा स्थापित नए बौद्ध आंदोलन की वैधता पर सवाल उठाया, यह देखते हुए कि यह किसी एक पारंपरिक एशियाई वंश परंपरा पर आधारित नहीं हैं, बल्कि बौद्ध धर्म के विकास में सभी तीन ऐतिहासिक चरणों से शिक्षाओं और प्रथाओं पर चुनिंदा रूप से आधारित हैं.
30 अक्टूबर 2018 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.
संघरक्षित द्वारा स्थापित बौद्ध आंदोलन, बुद्ध की शिक्षाओं और बौद्ध अभ्यास की समझ की उनकी विशेष प्रस्तुति पर आधारित एक वास्तव में विशिष्ट बौद्ध परंपरा के रूप में विकसित हो रहा है. भारत में, संघरक्षितजी को बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार के माध्यम से शोषण करनेवाली जाति व्यवस्था से लाखों लोगों की मुक्ति में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में देखा जाता है. संघरक्षितजी की कई पुस्तकें एक और विरासत का हिस्सा हैं. उन्होंने 70 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की और उनकी संपूर्ण रचनाएँ वर्तमान में 27 खंडों में प्रकाशित हो रही हैं. बौद्ध शिक्षाओं को संप्रेषित करने में अपनी खूबियों के अलावा, इस लेखन में, अपने प्रशंसकों के लिए, उनकी साहित्यिक व्यापकता और गहराई आधुनिक बौध्द साहित्य में बेजोड़ है.
अधिक व्यापक रूप से, बौद्ध धर्म को उसके पारंपरिक एशियाई सामाजिक परिस्थितियों से बहुत ही भिन्न ऐसे आधुनिक जगत की परिस्थितियों में संप्रेषित करने के कार्य में 70 से ज्यादा सालों तक अपने आप को झोंक दिया. उनका उद्देश्य बौद्ध धर्म को नवीनीकृत करना था. बौध्द परंपरा की केंद्रिय शिक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, पवित्र मार्ग के रुप मे उसकी गहनता को कायम रखते हुए यह कार्य उन्होने किया. अपने आचरण, लेखन और स्वयंस्थापित संघ के माध्यम से, संघरक्षितजी ने बौद्धधर्म की मित्रता, प्रतिबद्धता और गहराई की चेतना को पुनर्जीवित किया.
संघरक्षितजी को उनकी मित्रता के माध्यम से याद करना
उर्ग्येन संघरक्षित ट्रस्ट ने sangharakshita.org शुरु किया है - संघरक्षितजी के जीवन के बारे में जानने और उनकी शिक्षाओं तक पहुँचने का यह स्थान है.
होम पेज लोगों को संघरक्षितजी से परिचित कराता है.
जीवन पेज विभिन्न मीडिया का उपयोग करके उनके जीवन की एक बहुत ही विस्तृत कहानी बताता है.
शिक्षा पेज उनके कार्य का परिचय कराता हैं. संघरक्षितजी के बाद के लेखन को पढ़ने के लिए लेख पेज देखें, जो अब मुफ़्त में ऑनलाइन पढ़ने के लिए उपलब्ध है. किताबें, ऑडियो और वीडियो पेज जल्द ही आने वाले हैं.