जगदीश कश्यप (1908-1976) का जन्म उत्तर भारत के बिहार में हुआ था. वे एक अपरंपरागत व्यक्ति के रुपमें  बड़े हुए थे, पश्चिमीकरण और हिंदू परंपरावाद दोनों से दूर रहते थे. जाति को अस्वीकार करके आर्य समाज आंदोलन में शामिल हो गए थे. लेकिन पाया कि जातिवाद वहाँ भी समान रूप से व्याप्त था. शिक्षा में उन्होंने पटना कॉलेज से बीए और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से दो एमए की डिग्रीयाँ प्राप्त की थी. पाली सीखने की इच्छा से वे श्रीलंका में एक भिक्खु  कॉलेज में अध्ययन करने चले गए. वहां 1940 में उन्हें तिपिटकाचार्य की उपाधि से सम्मानित किया गया. 1934 में उनकी भिक्खु दिक्षा हुई. वे भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार में मुख्य व्यक्तियों में से एक बन गए. उन्होंने कई पाली ग्रंथों का अनुवाद किया और पाली ग्रंथों का आधुनिक भारतीय देवनागरी लिपि में लिप्यंतरण आयोजित किया.

1949 में  जब भिक्खु कश्यप बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पाली के प्रोफेसर थे, भंते संघरक्षित को एक छात्र के रूप में ले लिया. संघरक्षितजी ने उनके साथ पाली, अभिधर्म और तर्कशास्त्र का अध्ययन किया. संघरक्षितजी ने बताया कि उनके संपर्क के कारण ही भिक्खु कश्यप को विश्वविद्यालय छोड़ने और अपने खुद के भिक्षापात्र से अपना भरण-पोषण करने का आत्मविश्वास मिला, जिससे उनके जीवन को एक नई दिशा मिली. जब भिक्खु कश्यप उन्हें पूर्वी हिमालय में कलिम्पोंग ले गए और उनसे कहा कि वे वहीं रहें और 'बौद्ध धर्म की भलाई के लिए काम करें', संघरक्षितजी के जीवन को भी एक नई दिशा मिली.

 
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“अत्यधिक मोटापे के कारण उनमें एक पहाड़ जैसी स्थिरता महसूस होती थी. साथ ही, उनका सांवला चेहरा दृढ़ता से चिह्नित था, और उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता, उनके तरोताजा चेहरेपर झलकती थी. उनसे निकलने वाली विनम्र सौम्यता आत्मविश्वास और भरोसे को आमंत्रित करती प्रतीत होती थी.”

The Rainbow Road from Tooting Broadway to Kalimpong in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.395

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जगदीश कश्यप द्वारा अभिधर्म दर्शन

भारत में 1954 में प्रकाशित यह पुस्तक, इस विषय पर जगदीश कश्यप द्वारा लिखे गए दो खंडों में से पहली है. यह खंड पाली अभिधम्म-पिटक और बुद्धघोष के विशुद्धिमग्ग को सूत्रात्मक पंक्तियों की एक श्रृंखला में संक्षिप्त करता है.  यह अभिधम्म-पिटक के सात ग्रंथों में से पहले धम्मसंगनी में चीजों (धम्मों) के विश्लेषण और व्यवस्थित समूहीकरण में अपनाई गई पद्धति का एक विशद विवरण है. इस पुस्तक का उपयोग आज भी श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और इंडो-चीन में अभिधम्म के परिचय के रूप में किया जाता है.

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भिक्खु जगदीश कश्यप द्वारा लिखा गया पत्र

भिक्खु जगदीश कश्यप द्वारा संघरक्षितजी को 15 अगस्त 1962 को लिखा गया यह पत्र हाल ही में पत्रों के अभिलेखागार में पाया गया है और यह उन कई बहुमूल्य पत्रों में से एक है, जिन्हें संग्रहित किया जाना है.

‘मैंने अपने गुरुओं से क्या सीखा’ पर (अधूरी) पंक्तियों का अंतिम पृष्ठ

जबकि यह प्रदर्शनी संघरक्षितजी के मुख्य बौद्ध शिक्षकों से प्रेरणा पर केंद्रित है, इन पंक्तियों से यह बहुत स्पष्ट है कि अपने पूरे जीवन में उन्होंने बहुत से स्रोतों से सीखा है. कुछ हिंदू शिक्षक हैं, कुछ बौद्ध हैं, कुछ भिक्षु हैं, कुछ भिक्षु नहीं हैं, अधिकांश पुरुष थे लेकिन कुछ महिलाएँ भी थीं.  हालाँकि अधिकांश उम्र में बड़े थे, लेकिन कम से कम एक बारह साल छोटा था. और हालाँकि यहाँ वह इन शिक्षकों से सीखी केवल एक ही चीज़ का सम्मान प्रकट करते है, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उन्होंने केवल एक ही चीज़ सीखी है. गुरुओं की सूची में कुछ विनोद का भी स्पर्श है, जैसे,  डॉ. जॉर्ज रोरिक, श्रीमती पिल्गर और गुरु मसाला दोसाई के बारे में लिखी पंक्तियाँ!

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