जम्यांग खेंत्से चोकी लोद्रो (1893-1959) बीसवीं सदी के सबसे उत्कृष्ट तिब्बती गुरु के रूप में विख्यात है. सभी परंपराओं के विशेषज्ञ और सभी वंशों के धारक, वे रिमे (गैर-सांप्रदायिक) आंदोलन के केंद्र में थे. रिम्पोचे के तिब्बत से भागकर आने के कुछ समय बाद ही 1957 में उर्ग्येन संघरक्षितजी ने उनसे कलिम्पोंग में मुलाकात की. उनसे संघरक्षितजी ने मंजुघोष, अवलोकितेश्वर, वज्रपाणि और तारा इन बोधिसत्वों की दीक्षा या साधना प्राप्त की थी. उन्होंने रिम्पोचे की तस्वीर अपने पूजास्थान पर रखी थी और आमतौर पर अपनी डेस्क पर या अपनी कुर्सी के बगल में एक छोटी सी मेज पर एक और तस्वीर रखा करते थे.

 
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"जम्यंग खेंत्से रिम्पोचे की मेरे मन में पहली छवि यह थी कि वे एक पक्के भिक्षु थे. अपने छोटे कटे हुए सफेद बाल, कानों की लंबी लोब और गहरी रेखाओं वाले चेहरे के साथ, वे वास्तव में एक तिब्बती अवतारित लामा के बजाय बर्मी महाथेरा की तरह ज्यादा दिखते थे.… वे एक तरह के सिंहासन पर पालथी मारके बैठे थे जो तीन या चार बड़े, जो एक के ऊपर एक रखे हुए चौकोर तिब्बती कुशनों से बना था; उनके सामने एक संकरी मेज थी जिस पर एक वज्र और घंटी, एक लंबी, घुमावदार टोंटी वाला कलश, चावल से भरा एक छोटा बर्तन और अन्य पूजाविधि उपकरण रखे हुए थे. गुरु के बाईं ओर, एक ही गद्दे पर, 'डाकिनी' बैठी थी, जैसा कि उन्हे सम्मानपूर्वक कहा जाता था, और उनके बाईं ओर, एक गद्दे पर  सिक्किम की महारानी बैठी थीं. गुरु के दाईं ओर उनके निजी परिचारक, एक अन्य भिक्षु, काचू रिम्पोचे और मेरे अच्छे धर्म-मित्र सोनम टोपगे काजी थे. मेरा स्थान रिम्पोचे के ठीक सामने था.” 

Precious Teachers, The Complete Works of Sangharakshita, vol. 22, पृ.399 और 402

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मंजुघोष थांग्का

24 अक्टूबर 1957 को संघरक्षितजी को दीक्षा देने के बाद, जम्यांग खेंत्से रिम्पोचे के निर्देश पर यह थांग्का  उनके लिए चित्रित किया गया था.

“पहला उपहार एक थांग्का या चित्रित स्क्रॉल था, जो समृद्ध चीनी ब्रोकेड की पारंपरिक सीमा से चमकता था और रोलर्स पर चढ़ा हुआ था. बड़ी केंद्रीय आकृति काषाय रंग के मंजुघोष की थी, जिनके दाहिने हाथ से अंतर्दृष्टि की एक ज्वलंत तलवार को ऊपर उठाया है, जबकि अपने बाएं हाथ में एक सफेद कमल के फूल के तने को पकड़ रखा है, जिसकी खुली पंखुड़ियों पर एक पवित्र पुस्तक रखी हुई है, जिसे प्रज्ञापारमिता माना जाता है. उनके दाईं ओर एक सफेद, चार भुजाओं वाले अवलोकितेश्वर है, और उनके बाईं ओर एक गहरे नीले रंग के वज्रपाणि अपने क्रृद्ध रूप में है. मंजुघोष के नीचे ग्रीन तारा है और उसके ऊपर तीन स्तरों पर दो दर्जन मानव शिक्षक है, जिनमें से मैंने केवल बुद्ध और मिलारेपा को पहचाना था. दो क्रोधी देवता, एक नीला और एक लाल, क्रमशः पेंटिंग के बाएं और दाएं निचले कोने पर थे, जबकि प्रज्ञापारमिता की पुस्तक के दाईं ओर बर्फ से ढके पहाड़ों की एक श्रृंखला थी. दो पहाड़ों में एक गुफा थी और प्रत्येक गुफा में एक छोटी पीली पोशाक पहने एक एक आकृति बैठी हुई थी.

"जम्यंग खेंत्से ने मुझे बताया था कि यह पेंटिंग जितनी वह चाहते थे उतनी अच्छी तरह से नही बनाई गई थी. हालांकि उसे बनाने के लिए उन्होंने गंगटोक  के सबसे अच्छे चित्रकार को यह काम दिया था; और वास्तव में, यह काम बेढंगे तरीक़े से किया गया था, मंजुघोष के शरीर से निकलने वाली इंद्रधनुषी रोशनी की किरणें ठोस दिखने वाली इंद्रधनुषी गेंदों की एक अंगूठी में समाप्त हो रही थीं. लेकिन उनके अपने निर्देशों के अनुसार चित्रित किया गया थांग्का  उन्होंने मुझे दिया, इस दयालुता से मै इतना प्रभावित हुआ कि, इसकी किसी भी कमी के बारे में मुझे कोई चिंता नहीं थी. इसके अलावा, उनके व्दारा मुझे थांग्का दिए जाने में एक विशेष महत्व भी था. जैसा कि उन्होंने आगे बताया, उन्होंने मुझे जो दीक्षाएँ दी थीं, उनके माध्यम से उन्होंने मुझे उन महान गुरुओं की शिक्षाओं का सार प्रदान किया था, जिन्हें इसमें दर्शाया गया था. अब मैं उनका आध्यात्मिक वारिस और उत्तराधिकारी था. मुस्कुराते हुए, उन्होंने फिर उनकी गुफाओं में पीले वस्त्र पहने आकृतियों की ओर इशारा किया, जिनमें से एक ध्यान कर रही थी और दूसरी शिक्षा दे रही थी, दोनों मैं ही था.”

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita vol. 22, pp.406–7

थांग्का की मूल प्रति बॉम्बे में ‘सोसाइटी ऑफ द सर्वेंट्स ऑफ गॉड’ के पास है. संघरक्षितजी ने 1962 में उनसे कहा कि वे फिलहाल इसकी देखभाल करें.

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लाल लकड़ी के अरबी कवर बोर्ड में जम्यंग खेंत्से रिम्पोचे की अभिषेक पुस्तकें 

ये दीक्षा (अभिषेक) की चार साधनाओं की पुस्तकें हैं जिन्हें जम्यंग खेंत्से रिम्पोचे ने 24 अक्टूबर 1957 को संघरक्षितजी को दिए थे. हस्तलिखित पाठ और लकड़ी के अरबी कवर सिक्किम की महारानी ने संघरक्षितजी के लिए बनाए थे. उन्होंने कई बार गंगटोक पैलेस मे भेंट की थी इसलिए संघरक्षितजीकी उनसे पहचान थी. वह जम्यंग खेंत्से की बहुत बड़ी समर्थक थीं और उन्हें उनसे कई (अभिषेक) दीक्षाए प्राप्त हुई थीं.

"साधनाओं का अभ्यास करने के लिए मुझे उनका वर्णन करने वाले पुस्तकों की आवश्यकता होगी, और महारानी ने इन्हें प्रदान करने का बीड़ा  था."

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol. 22, pp.402

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Diary entry for 24 October 1957
 
 

24 अक्टूबर 1957 की डायरी प्रविष्टि

 
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