दिल्गो खेंत्से रिम्पोचे (1910-1991) और जम्यंग खेंत्से (1893-1959) दोनों को पिछले खेंत्से रिम्पोचे के अवतार के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन जम्यंग उनसे करीब सत्रह साल बड़े थे और दिलगो खेंत्से उन्हें अपना मूल गुरु मानते थे. संघरक्षितजी 1963 में कलिम्पोंग में नियमित रूप से दिलगो खेंत्से से मिलने जाते थे और उनसे अमिताभ फोवा साधना, कुरुकुल्ला और जम्भाला साधनाओं की दीक्षाएं प्राप्त की थी

 
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"इतने प्रतिष्ठित और इतने सम्मानित लामा  होने के बावजूद, दिल्गो खेंत्से रिम्पोचे से अधिक विनम्र या अधिक  सहज  व्यक्ति  मिलना  बहुत मुश्किल है. इसलिए कुछ ही महीनों में मैं उनसे नियमित रूप से मिलने लगा ... क्योंकि मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं दखलंदाजी कर रहा हूँ, या कि मैं रिम्पोचे का समय बर्बाद कर रहा हूँ. ... ऐसी कुछ मुलाकातों के बाद मैंने पाया कि रिम्पोचे ने कभी भी ऐसा नहीं महसूस किया कि वे जो कुछ भी कर रहे थे उसमें उन्हें कोई बाधा या व्यवधान हुआ हो. उनका ध्यान एक काम से दूसरे काम पर सहजता और अखंडता से चला जाता था.”

Precious Teachers, The Complete Works of Sangharakshita, vol. 22, p.554

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अभिषेक ग्रंथ

दिल्गो खेंत्से रिम्पोचे  ने संघरक्षितजी को कुरुकुल्ला और जम्भाला साधना दिए जाने के बाद, उन्हें दूसरों को संप्रेषित करने के लिए ध्यान और तांत्रिक अनुष्ठानों की व्याख्या के साथ ग्रंथों की प्रतियां उपलब्ध कराईं.

“दो सप्ताह बाद, 28 अक्टूबर [1963] को, खेंत्से रिम्पोचे ने मुझे कुरुकुल्ला जो बोधिसत्व तारा का एक नृत्य करता हुआ लाल डाकिनी रूप है, और जम्भाला जो मोटे सुनहरे-पीले बोधिसत्व, भौतिक संपदा और आध्यात्मिक संपदा के प्रतिक है उनकी साधनाओं में दीक्षा दी. फोवा अभिषेक की तरह, यह समारोह भूतानी गोम्पा के परिसर के अंदर के बंगले में रिम्पोचे के कमरे में हुआ था. चूंकि हम केवल तीन लोग थे, तीसरा व्यक्ति मेरा दुभाषिया था, और चूंकि कमरे का छोटा होना मुझे गुरु के काफी करीब बैठने के लिए बाध्य करता था, एक प्यार का माहौल बना रहा. वास्तव में, यह बिल्कुल भी औपचारिक दीक्षा जैसा नहीं लगा. अमिताभ फोवा अभिषेक के अवसर पर, खेंत्से रिम्पोचे एक स्नेही पिता की तरह थे, जो अपने बेटे को चुपचाप और गोपनीय रूप से कुछ बता रहे थे, जो उसके पूरे जीवन में उसके लिए बहुत मूल्यवान होगा. योगी चेन के कहने पर मैंने इन अभिषेकों की याचना की थी. फोवा अभिषेक के कारण महान दिल्गो खेंत्से रिम्पोचे के साथ मेरा आध्यात्मिक संबंध निर्माण हुआ है इस बात से वे बहुत खुश थे. और वे चाहते थे कि मैं उनसे और दीक्षाएं लेकर इस संबंध को और मजबूत करूँ. उन्होंने कहा था कि कुरुकुल्ला और जम्भाला धर्म के लिए मेरे काम में मेरी मदद करेंगे.”

Precious Teachers in The Complete Works of Sangharakshita, vol.22, p.555

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हड्डी के हैंडल वाला खम्पा चाकू

“वह मुलाकात मुझे याद है... क्योंकि दिल्गो खेंत्से और उनकी पत्नी, खास तौर पर उनकी पत्नी, मुझे विदाई के समय कुछ भेंट देना चाहते थे, लेकिन उनके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था, वे उस समय बहुत गरीब थे. लेकिन उनकी पत्नी ने इधर-उधर खोज की और उन्हें एक छोटा खम्पा चाकू मिला, जो लगभग इतना लंबा था, हड्डी के हैंडल वाला और चांदी के माउंटिंग के साथ एक छोटे म्यान में, और उन्होंने मुझे यह देते हुए कहा, ‘हमें बहुत खेद है, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, लेकिन हम इतना ही दे सकते हैं, कृपया इसे स्वीकार करें.’ और निश्चित रूप से मेरे पास अभी भी पद्मलोक में मेरे अध्ययन में वह है, आप में से कुछ ने इसे देखा होगा, लेकिन यह नहीं जानते होंगे कि इसका इतिहास क्या था. वह उनका विदाई उपहार था.”

‘Dilgo Khyentse Rinpoche’, a talk given by Sangharakshita in 1991 (https://www.freebuddhistaudio.com/audio/details?num=175)

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