श्वेत तारा ऐप्लीक (जड़ाउ काम)
वस्तु का स्थान: शयनकक्ष
संघरक्षितजी के मित्र और गुरु, धार्दो रिम्पोचे, श्वेत तारा के ध्यान को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते थे और उन्होंने अपनी तेरह वर्ष की आयु में इस साधना का अभ्यास करने का अनुरोध किया था. उन्होंने जीवन भर प्रतिदिन इस ध्यान का अभ्यास किया. उन्होंने संघरक्षित को श्वेत तारा की दीक्षा 1963 के अंत में, संघरक्षित के भारत छोड़ने से पहले, दी थी. उनकी जीवन-शक्ति को किसी भी प्रकार का खतरा न हो यह इस दिक्षा देने के पीछे का उद्देश्य था.
यह थांग्का, जो उन्नीसवीं शताब्दी का है. वह रिम्पोचे के पिछले टुल्कु से आया था और धार्दो रिम्पोचे की सबसे मूल्यवान वस्तुओं में से एक था. 1986 में, इस थांग्का के उपहार के माध्यम से, रिम्पोचे ने संघरक्षितजी को अपना आशीर्वाद दिया था.