संघरक्षितजी के माता-पिता की तस्वीरें
वस्तु का स्थान: शयनकक्ष
जब संघरक्षितजी अधिष्ठान में रहने चले गए, तो उन्होंने अपने माता-पिता की इन तस्वीरों को फ्रेम करवाकर अपने पलंग के ऊपर टांग दिया था. वे दोनों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता रखते थे और अक्सर अपनी माँ के सपने देखा करते थे. इन तस्वीरों को रखने का महत्व अनदेखा नहीं किया जा सकता. एक तरह से, इन्हें तारा के दोनों ओर रखना, उन्हें तारा के संरक्षण में रखने के समान था. संघरक्षितजी के मन में यह भी बात होगी कि त्रिशरण प्रणिपात साधना में, व्यक्ति कल्पना करता है कि सभी पुरुष और स्त्रियाँ उस के साथ शरण जा रहे हैं; और पुरुषों का नेतृत्व उसके पिता और स्त्रियों का माता करती हैं.
अब, मैं उन्हें अपने सपनों में देखता हूँ;
उनके चारों ओर एक रहस्यमय प्रकाश चमकता है.
वे मेरी प्रेरणा बन गए हैं.
मैं और मेरी माँ एक बाग में टहल रहे थे.
उसका रूप न तो युवा था और न ही वृद्ध,
उसने सोने का गाउन पहना हुआ था...
From ‘The Family Reunion’ (2009) in The Complete Works of Sangharakshita, vol.25, p. 449