टेरी की मूर्ति
वस्तु स्थान: शयनकक्ष
संघरक्षितजी के शयनकक्ष की खिड़की की चौखट पर रखी हुई एक छोटी, काली, मिट्टी की मूर्ति, उनके मित्र टेरी डेलामेर ने 1960 के दशक में बनाई थी. टेरी ने इसे 'माँ' कहा था. संघरक्षित की टेरी से पहली मुलाकात 1964 में हैम्पस्टेड बौद्ध विहार में दिए गए एक व्याख्यान के बाद हुई थी. क्रॉसिंग द स्ट्रीम (संघरक्षितजी का 1964-1969 की अवधि का संस्मरण) की प्रस्तावना में अभय लिखते हैं:
उनके बीच जो मित्रता शीघ्र ही विकसित होती है, उसके मूल में एक साझा आध्यात्मिक आदर्श के आधार पर एक प्रकार की पारस्परिक प्रतिक्रिया है, जिसे... संघरक्षितजी ने आध्यात्मिक समाज के सार के रूप में परिभाषित किया है. वे लिखते हैं कि इस मित्रता का 'मेरे शेष जीवन और मेरे माध्यम से ब्रिटिश बौद्ध धर्म के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव है.'
The Complete Works of Sangharakshita, vol. 23, p.xviii