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कोंजर्वेटरी (गरम-घर)

अधिष्ठान में चले जाने के बाद, जब वे 87 वर्ष के थे, संघरक्षितजी अपने जागने के अधिकांश घंटे या तो लिविंग रूम में या उर्ग्येन हाउस के कंज़र्वेटरी में बिताया करते थे. कंज़र्वेटरी से उन्हें सर्दी और गर्मी दोनों में अधिष्ठान के बगीचों और खेतों को देखने का मौका मिलता था.  इससे उन्हे बजरी वाले पगडंडीयों पर पहुंचने में आसानी होती थी, जहां उन्हे अक्सर टहलते हुए, या किसी साथी के साथ बेंच पर चुपचाप बैठे हुए देखा जा सकता था.

बजरी पगडंडीयों पर आना-जानाः एक ताजा खबर

बजरी पगडंडीयों पर आगे और पीछे

फुल से लदे पेडों के बीच

मै चलकर आया ग्रिष्म की दोपहर में

अपनी जान को सुकुन देने.

गुजर गए साठ वर्ष,

और आज मै चलता हूं,

बत्तख वाली झ़ील और 

लाल -सफेद गुलाबों के बीच

अपने सामने रोमर को ढकेलते हुए 

अब मैं चलता हूँ

जान के सुकुन के लिए नही

शरीर के वर्जीश के लिए

आगे और पीछे मै चलता हूँ, इतनी प्रसन्नता से,

इस कुरकुरी बजरी पर,

अब, नब्बे और पार की उम्र में,

जीतना सफर तय कर सकता हूँ, बस उतना.

The Complete Works of Sangharakshita, volume 25, p.460

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