किताबों की ऊंची अलमारियाँ
वस्तु का स्थान : लिविंग रुम
संघरक्षितजी के लगभग 12,000 पुस्तकों के निजी संग्रह से अधिष्ठान में संघरक्षित लायब्रेरी का निर्माण हुआ है. वर्षों सें, वह हमेशा अपने लिविंग रूम या अध्ययन कक्ष में अपने साथ एक छोटा सा संग्रह रखा करते थे. इसमें आम तौर पर संदर्भ सामग्री, उनके स्वयं के कार्यों की प्रतियां, जिन्हें वह पढ़ने का इरादा रखते थे ऐसी किताबें, साथ ही महत्वपूर्ण बौद्ध सुत्त और सूत्र शामिल थे. इस छोटे संग्रह की कमोबेश स्थायी विशेषता वे रचनाएँ थीं जो प्लोटिनस और नियोप्लेटोनिक परंपरा में उनकी गहरी रुचि और प्रेम को दर्शाती है. संघरक्षितजी नियोप्लाटोनिक परंपरा और बौद्ध धर्म के बारे में उनकी समानताओं और अंतरों को रेखांकित करते हुए, लिखने का इरादा रखते थे, हालाँकि अंत में इस संबंध में वे कुछ भी नहीं कर पाएं.
तो, नियोप्लाटोनिज्म का बौद्ध धर्म से कैसा संबंध है? यह बहुत बड़ा और जटिल प्रश्न है. मैं इसमें जाने की कोशिश भी नहीं करूंगा. मैं केवल इस बारे में कुछ शब्द कहूंगा कि मैं नियोप्लाटोनिज्म को क्यों महत्वपूर्ण मानता हूं और इसमें मेरी रुचि क्यों है. मुझे इसमें मुख्य रूप से दिलचस्पी है क्योंकि मैं नियोप्लेटोनिक परंपरा को वास्तव में पश्चिम की सबसे महत्वपूर्ण, अग्रणी, आध्यात्मिक परंपरा के रूप में देखता हूं, और बौद्ध धर्म को पूर्व की अग्रणी आध्यात्मिक परंपरा के रूप में देखता हूं.
द रिलिजन आफ आर्ट (कला का धर्म), असंपादित सेमिनार, फ्री बुद्धिस्टऑडियो पर उपलब्ध:
https://www.freebuddhistaudio.com/texts/read?num=SEM129&at=text&p=8