अनागारिक धर्मपाल के मूर्ति की तस्विर
वस्तु का स्थान : लिविंग रुम
अनागारिक धर्मपाल की यह मूर्ति श्रीलंका के कैंडी में पवित्र दांत अवशेष के मंदिर के सामने खड़ी है. 2013 में अधिष्ठान में जाने के बाद, सोने की फ्रेम वाली इस तस्वीर को संघरक्षितजी ने अपने लिविंग रूम में दीवार पर टांगने के लिए कहा था. जन्म से श्रीलंकाई, अनागरिक धर्मपाल (1864-1933) पहले ऐसे बौद्ध थे जिन्होंने जापान, बर्मा, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली और जर्मनी का दौरा करते हुए 'मास्टर के संदेश के साथ दुनिया को घेर लिया' था. भारत में उन्होंने महाबोधि सोसाईटी की स्थापना की और बोधगया में महाबोधि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए लंबी और कड़ी लड़ाई लड़ी. उनके बारे में कहा जाता है कि वे कार्यकर्ता और योगी दोनों थे, जो आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन के लिए गहराई से प्रतिबद्ध थे. 1953 में, संघरक्षितजी ने कलकत्ता के महाबोधि मुख्यालय में अनागारिक धर्मपाल की जीवनी लिखने में कई सप्ताह बिताए थे. उनके बारे में संघरक्षितजी कहते है -
हमारे समय के सबसे महान 'बौद्ध मिशनरी' और, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के बाद, आधुनिक भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार व्यक्ति .
संदर्भ - अंधक्कार में ज्योति की प्रस्तावना, त्रिरत्न ग्रंथ माला, पुणे 1980, पृष्ठ 9.