रेडिओ

वस्तु का स्थान : लिविंग रुम

बीबीसी रेडियो 4 पर समाचार और अपनी रुचि के अन्य कार्यक्रमों को सुनना संघरक्षितजी की दिनचर्या का एक काफ़ी नियमित हिस्सा रहा है. शायद रेडियो (या वायरलेस, जैसा कि इसे कहा जाता था) के संबंध में उनके व्यक्तिगत इतिहास की झलक  इस  मनमौजी  कविता में पाई जा सकती है:

मिस्टर वायरलेस (2009)

मेरे सबसे अच्छे दोस्त मिस्टर वायरलेस से मिलें,

मैं उसे वर्षों से जानता हूं.

हम साथ में खूब हंसे हैं;

हमने मिलकर आंसू भी बहाये हैं.

वह मुझे सुबह जगाता है

दुनिया भर की खबरों के साथ,

भूकंप और समझौतों की ख़बरें,

सेना की वापसी, रॉकेट फेंके गए.

वह मुझसे लोगों की बात करता है,

निकट और दूर के  देशों के,

पियानो पर धुनें बजाता है, मेरे लिए,

या ऑर्केस्ट्रा का संचालन करता है.

हाँ, हम एक साथ बड़े हुए,

और मुझे अभी भी याद है

वो दिन जब मिस्टर वायरलेस

छोटासा क्रिस्टल सेट था.

तब उसके पास संचायक थे,

वह वाल्वों में आनन्द लेता;

मुझे हेडफ़ोन लगाना पड़ता

उसकी दबी हुई आवाज सुनने के लिए.

अब मैं उसे बहुत स्पष्ट सुनता हूँ,

उसे चिल्लाने की जरूरत नहीं पडती.

बैठने के कमरे से लेकर रसोईघर तक

वह मेरा पीछा करता है.

मेरे सबसे अच्छे दोस्त मिस्टर वायरलेस से मिलें.

आखिरी ध्वनि जो मैं सुनूंगा

मेरे कान से धिरे धिरे उतरती हुई,

उसकी वही प्यारी आवाज…..

द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ़ संघरक्षिता, खंड. 25, पृ.448

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