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पद्मसंभव मुर्ती

वस्तु का स्थान : लिविंग रुम

अर्ध-मिथिक 'गुरु रिम्पोचे' की यह मुर्ति, जिसे पद्मसंभव के नाम से जाना जाता है, एक आधुनिक, हाथ से रंगी हुई नेपाली छवि है, जिसे संघरक्षितजी ने 2005 में इंग्लैंड के नॉरफ़ॉक के विमोंडहँम में एक संघ परिषद में अपने लिए लायी था, यह परिषद उनके 80 वें जन्मदिन को भी चिह्नित करनेवाली थी. उन्होंने इस मुर्ती को अपने निजी पुजास्थान में रखा थी. पद्मसंभव को तिब्बत और व्यापक हिमालयी क्षेत्र के बौद्ध दूसरे बुद्ध के रूप में सम्मानित करते है, उनके बारे में कहा जाता है कि वे अमिताभ और अवलोकितेश्वर के प्रकटरुप है और कमलपुष्प में पूरी तरह से प्रबुद्ध स्थिति में उत्फुर्त रुप से उनका जन्म हुआ था.

पद्मसंभव संघरक्षितजी के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक हस्ति थे. गुरु रिम्पोचे की कई छवियां उनके व्यक्तिगत संग्रह में रखी गई हैं. इनमें पद्मसंभव की आठ रुपों का प्रतिनिधित्व करने वाले थांग्के का एक प्रभावशाली सेट भी शामिल है, जिसे संघरक्षितजी ने 1950 के दशक में खरीदने के बाद मूल रूप से कलिम्पोंग में अपने मठ त्रियान वर्धन विहार की दीवारों पर प्रदर्शित किया था. 

हालाँकि मैंने पहले कभी पद्मसंभव का रुप नहीं देखा था, लेकिन उन्हे देखते ही यह महसूस हुआ की वे मुझसे इतनी गहराई से परिचित है कि पृथ्वी पर अन्य कोई भी इतना परिचित नहीं: परिचित और आकर्षक भी. इतने परिचित कि वे मै स्वयं ही हूँ, उसीके साथ असीम रहस्यमयी, असीम अद्भुत और असीम रूप से प्रेरणादायक.  उनको ऐसे ही परिचित, रहस्यमय, अद्भुत और प्रेरणादायक बने रहना था. वास्तव में, तब से यह अनमोल गुरु - गुरु रिम्पोचे - की छवि ने मेरे आंतरिक आध्यात्मिक जगत में एक स्थायी स्थान बना लिया था, जैसे उन्होंने पूरे हिमालय क्षेत्र के आध्यात्मिक जीवन और कल्पना में एक प्रमुख भूमिका निभाई है.

Facing Mount Kanchenjunga, The Complete Works of Sangharakshita, vol. 21, p.93

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