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माँ की कुर्सी

वस्तु का स्थान : लिविंग रुम

एक दिन सुबह नाश्ते के समय अचानक मुझे लगा, 'मुझे जाकर अपनी माँ से मिलना ही होगा. मैं दो सप्ताह तक इंतजार नहीं कर सकता. मुझे जाकर उसे देखना ही पडेगा'... इसलिए मैंने परमार्थ से कहा, जो मेरे साथ थे, 'चलो मेरी मां को देखने चलते है.'

हम अस्पताल गए, और नर्स को देखा, और उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं, और मैंने कहा कि मैं श्रीमती विल्टशायर को देखना चाहता हूं, और मैं उनका बेटा हूं.  उसने कहा, 'मुझे आपको बताते हुए दुःख हो रहा है, उसकी मृत्यु सुबह दो बजे हुई है' ... आधे घंटे के बाद, हम चैपल ऑफ रेस्ट में गए. मैं अपनी मां के शव के पास आधे घंटे तक बैठा रहा और हमने वज्रसत्व मंत्र का पठन किया.

From ‘Urgyen Sangharakshita in a “conversation” with Ratnachuda about Death and Grief’, 2011, unpublished.
 

 

संघरक्षितजी ने अपनी माँ की संपत्ति से कुछ वस्तुएं रखी थी उनमें  में से एक उनकी कुर्सी थी. वह लिविंग रूम में मौजूद दो कुर्सियों के बीच बारी-बारी से बैठते थे, लेकिन अक्सर वह ऑडियो किताबें सुनने के लिए अपनी मां की कुर्सी में बैठ जाते थे. उनके आखरी वर्षों में उन्हें अपनी माँ और पिता दोनों बार-बार सपने  आते थे. उनकी तस्वीरें उन्होंने अपने बिस्तर के सिरहाने पर सफेद तारा के रंगिन कपडे और धागों की बुनाई से बने चित्र के दोनों ओर लटकाने को कहा था.

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