धार्दो रिम्पोचे की अस्थियाँ
वस्तु का स्थान : लिविंग रुम
किताबों की अलमारियों के शीर्ष पर रखे लाल, हाथ से पेंट किए गए बक्से में संघरक्षितजी के मित्र, शिक्षक और जिन्हें वे जीवित बोधिसत्व मानते थे, ऐसे धार्दो रिम्पोचे (1917-1990) की मृत्यु के बाद त्रिरत्न बौद्ध संघ को दिया गया महत्वपूर्ण अस्थि (अवशेष) हैं.
कलिम्पोंग में पारंपरिक पूजा और दाह संस्कार के बाद, धार्दो रिम्पोचे की राख को मिट्टी की मूर्तियों (तिब्बती: त्सा-त्सा) में ढाला गया और प्रसिद्ध तिब्बती शिक्षक जे. त्सोंगखापा (1357-1419) की छवि के साथ मुहर लगाई गई थी.
अधिकांश राख को घूम (दार्जिलिंग, भारत के पास) में यिगा छोलिंग मठ, (जिसके धारदो रिम्पोचे मुख्य गुरु थे), में दफनाया गया था, कुछ राख को आर्यलोक (यूएसए), भाजा (भारत), गुह्यलोक (स्पेन), पद्मलोक (यूके), सुदर्शनलोक (न्यूजीलैंड), तिरत्नलोक (यूके) और विमलधातु (जर्मनी) सहित त्रिरत्न शिविर केंद्रों के स्तूपों में भी दफनाया गया था.
धारदो रिम्पोचे का आदर्श वाक्य था 'धम्मशिक्षा को संजोएं. एकता से रहे. मैत्रि बिखैरें'. यह उस स्कूल का आदर्श वाक्य था जिसे उन्होंने शुरू में तिब्बती अनाथों के लिए स्थापित किया था. इस स्कूल वर्षों तक त्रिरत्न महासंघ द्वारा अर्थ-सहायता दी गयी थी.