व्याख्यान नोट्स: 'क्या गुरु आवश्यक है?'(‘Is A Guru Necessary?’)

1970 की शरद ऋतु में संघरक्षितजी ने व्याख्यानों की एक और महत्वपूर्ण श्रृंखला दी, इस बार उनका विषय था 'व्यक्ति की उच्च उत्क्रांति'. समारोपिय व्याख्यान - जिसके नोट्स यहाँ प्रदर्शित हैं - एक महत्वपूर्ण प्रश्न की विचारोत्तेजक खोज थी: "क्या गुरु आवश्यक है?"

‘'श्रोताओं में से कई सदस्य स्पष्ट रूप से सदमे की स्थिति में थे, क्योंकि उन्हें अब एहसास हुआ कि जिस हल्के-फुल्के भाव से उन्होंने बौद्ध धर्म, या आध्यात्मिक जीवन, या उच्चतर विकास को अपनाया था, वह किसी भी तरह से उद्यम की गंभीरता के अनुरूप नहीं था. ऐसा लग रहा था मानो वे किसी स्वप्न से जागे हों और अब पहली बार देख रहे हों कि चढ़ाई कितनी कठिन है, वे कितनी ऊंची चोटियों पर चढ़ने वाले थे और हर तरफ फैली खाई कितनी भयावह थी.’

Sangharakshita, 1970 – A Retrospect, (CW23), p.463

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