डायरी प्रविष्टि 1 जनवरी 1965

‘पूर्व में बीस साल बिताने के बाद, मैं 1965 की शुरुआत में खुद को इंग्लैंड में पाता हूँ, जहाँ मैंने अब साढ़े चार महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बिताया है... 1965 के दौरान मैं सम्यक संबोधि की ओर बढ़ूँ, और सभी बुद्धों, बोधिसत्वों, धर्मपालों और डाकिनियों के आशीर्वाद से इंग्लैंड में धर्म का प्रसार जारी रहे!’

डायरी, 1 जनवरी 1965

संघरक्षितजी पिछले अगस्त में इंग्लैंड लौट आए थे. वे इंग्लिश संघ ट्रस्ट के निमंत्रण पर आए थे. उनकी योजना सिर्फ़ कुछ महीने वहां रहने की थी, ताकि वे छोटे ब्रिटिश बौद्ध आंदोलन को सहायता कर सकें और अगर संभव हो तो इंग्लिश संघ एसोसिएशन और बुध्दिस्ट सोसाइटी के बीच के संघर्ष को सुलझाने में मदद कर सकें. साथ ही वे अपने बूढ़े माता-पिता से मिलना चाहते थे.

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2. पासपोर्ट

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4. 1965 की अख़बार की कटिंग