1965 की अख़बार की कटिंग

संघरक्षित इंग्लिश संघ ट्रस्ट के हैम्पस्टेड बौद्ध विहार में रहते थे, जहाँ वे सभी दिन-प्रतिदिन की प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों के साथ 'पदस्थ' थे. इंग्लिश संघ एसोसिएशन और बुध्दिस्ट सोसाइटी के बीच की दरार को भरने के लिए उत्सुक, उन्होंने विहार और सोसाइटी दोनों के स्थानों पर व्याख्यान दिए. प्रश्न-उत्तर सत्र आयोजित किए, ध्यान सिखाया, शिविरों का नेतृत्व किया और हेस्टिंग्स, लीड्स, ब्राइटन और मैनचेस्टर सहित देश भर के बौद्ध समूहों का दौरा किया. साथ ही ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में छात्र संगठनों का भी दौरा किया. व्याख्यान देने के बाद, वे कभी-कभी किसी स्थानीय कैफ़े में चले जाते थे या अपने कमरे में वापस आकर लोगों से अनौपचारिक रूप से बात करते थे. इन सभी संवोदों के माध्यम से, उन्हें गहराई से समझ गया कि पश्चिम में भी ऐसे लोग हैं जो धर्म के लिए उत्सुक और परिपक्व हैं. और उन्हें समझ में आने लगा कि अगर धर्म को वास्तव में किसी दूसरी, बहुत अलग संस्कृति में जड़ जमानी है, तो किस तरह के दृष्टिकोण की आवश्यकता हो सकती है. यह सब अंग्रेजी संघ के सदस्यों के बीच तनाव, आपसी लड़ाई और चुगली की पृष्ठभूमि में हुआ.

‘इंग्लैंड लौटने के बाद मुझे जल्द ही पता चला कि इंग्लिश संघ के प्रमुख और हैम्पस्टेड बौद्ध विहार के प्रभारी के मेरे कर्तव्यों के कारण मुझे साहित्यिक कार्यों और व्यक्तिगत ध्यान के लिए कम समय मिला. ऐसा नहीं है कि मुझे इससे बहुत परेशानी हुई. मेरे लिए, बोले गए शब्दों के माध्यम से धर्म का प्रचार करना एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभ्यास था, और कभी-कभी यह मुझे व्याख्यान के अंत में चेतना की एक उच्च अवस्था में छोड़ देता था, जहाँ से नीचे आना हमेशा आसान नहीं होता था.’

Sangharakshita, Moving Against the Stream, (CW23), p.132

‘हेस्टिंग्स में 3.45 से 5.30 तक ध्यान कक्षा ली. अच्छा माहौल था, जिसमें अधिकांश लोग गंभीरता से अभ्यास कर रहे थे. श्रीमती स्मिथ बाद में थोड़ी बहस करने लगीं. उन्होंने कहा कि, जहाँ तक मेत्ता की बात है, वे वैसे भी हर समय इसका अभ्यास कर रही थीं ! 5.50 की बस पकड़ी और विक्टोरिया वापस आ गया...सिम्पोजियम पढ़ा और सो गया.’

Diary, Saturday 9 January 1965

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