भैषज्यगुरु बुध्द का थंग्का
वस्तु का स्थान : लिविंग रुम
दिवार पर आरामकुर्सी के उपर भैषज्यगुरु बुध्द का थंग्का टंगा हुआ है. उन्हे वैदुर्यप्रभा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है नीली चमक (नील प्रभा). बौध्द परंपरा में उन्हे अपनी शिक्षा की औषधि द्वारा दुःख का निवारण करनेवाले वैद्य कहा जाता है. उनके दाहिने हाथ के अंगुठे और मध्यमा के बीच हऱड के पौधे का तना है, आख्यायिकाओं में इस पौधे को आरोग्यदायि माना गया है.
तिब्बत पर चिनी कब्जे से भाग निकले तिब्बति लोगों से ‘फिरौति’ देकर संघरक्षितजी ने छुडायी वस्तुओं में से यह एक है. (यह आदरयुक्त बोलने का तरिका है, क्योंकि अनमोल प्रतिमाओं को ‘बेचना’ इस शब्द से अपमानित नही किया जा सकता.) 2013 की शुरुआत में जब संघरक्षितजी अधिष्ठान में रहने आए, पहले से चली आई कुछ बिमारियों से जुझ रहे थे. इसलिए यह उचित माना गया कि सर्वश्रेष्ठ वैद्य भैषज्यगुरु बुध्द की इस बेहतरिन प्रतिमा को उनके जीवन के अंतिम काल में, जहां वे सबसे ज्यादा समय बिता रहे है ऐसे उनके लिविंग रुम में लगाया जाय.
25 अक्तुबर 1963 में उनके गुरु धार्दो रिंपोचे द्वारा संघरक्षितजी को वैदुर्यप्रभा साधना का अभिषेक कराया गया था. यह संदर्भ उनकी जीवनी, प्रेशियस टिचर्स में आया है. (The Complete Works of Sangharakshita, vol. 22, p.557).