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 अवलेकितेश्वर मुर्ति

वस्तु का स्थान: लिविंग रुम

अवलोकितेश्वर, 'भगवान जो नीचे देखते हैं', न केवल इस दुःखभरी दुनिया की सुंदरता और भयावहता दोनों को करुणा से देखते हैं; सभी प्राणियों को दुःख से मुक्त करने के लिए भी प्रयास करते है. संघरक्षितजी के पूजास्थान में यह मुर्ति रखी हुई है. अवलोकितेश्वर के कमल जैसे दों हाथ ह्रदय के पास प्रार्थना में जोडे़ हुए हैं, दोनों होथों के बीच एक अद्भुत रत्न है - बोधिचित्त का रत्न. यह रत्न हमारे अपने दिल और दिमाग की अद्वय चमक और करुणा और प्रज्ञा के सह-उद्भव का प्रतीक है. 

अवलोकितेश्वर के चार-हाथों के रूप की यह छवि एक दशक से अधिक समय से संघरक्षितजी के पुजास्थान के केंद्र में है. यह उन्हें स्वयं त्रिरत्न बौद्ध संघ द्वारा दिया गया था और यह एक ऐसा उपहार है जिसे संघरक्षितजी ने संजोकर रखा था और जिसका वह बहुत ध्यान रखते थे. अवलोकितेश्वर की प्रतिमा का हमारे महासंघ के लिए गहरा प्रतीकात्मक महत्व है. 1999 में संघ को दिए गए अपने भाषण 'लुकिंग अहेड ए लिटिल वे' में उन्होंने कहा था, 

हम कभी-कभी संघ  की तुलना ग्यारह सिर और हजार भुजाओं वाले अवलोकितेश्वर से करते हैं... यह सिर्फ बोलने का एक तरीका नहीं है, यह सिर्फ भाषण का एक रूप भी नहीं है, हमें इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए, यहां तक ​​कि इसे शब्दशः भी लेना चाहिए.

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