अमिदा बुध्दरुप
वस्तु का स्थान: कौज़रवेटरी (गरम-घर)
'कामाकुरा बुद्ध' - अमिदा या अमिताभ बुद्ध की इस प्रतिकृति का परिचय संघरक्षितजी को पहली बार आठ साल की उम्र में हुआ था. उस वक्त उन्हें दो साल तक बिस्तर पर ही आराम के लिए बाध्य किया गया था. उस दौरान चिल्ड्रन्स इनसाइक्लोपीडिया (बच्चों का विश्वकोश) पढ़ने से उन्हे इस बुध्दरुप का पता चला था. जब वह बारह वर्ष के थे, तो पारिवारिक छुट्टियों के लिए जाते हुए शोरहैम के रास्ते में, उन्होंने एक छोटासा इसका प्रतिक-बुध्दरुप खरीदा, बाद में उसे वे धूप अर्पण किया करते थे. इसी से उनके बौद्ध पूजा की शुरुआत हुई थी. कंजर्वेटरी में एक छोटी मेज पर रखी यह मूर्ति 1970 के दशक की शुरुआत में लंदन के मुसवेल हिल में एक प्राचीन वस्तुओं की दुकान से खरीदी गई थी. एफडब्ल्यूबीओ (त्रिरत्न) के शुरुआती दिनों में यही मुर्ती कुछ पुजास्थानों के केंद्र में दिखाई देती है. धम्मचारी अलोक याद करते हैं कि "जब पहली बार 1976 की गर्मियों में पद्मलोक शुरू हुआ था तब मैंने पहली बार संघरक्षितजी के साथ अध्ययन सेमिनार के लिए पद्मलोक जाना शुरू किया था, सबसे शुरुआती पुजास्थानों में यह मुर्ती रखी जाती थी."
हरे मैलाकाइट का टुकड़ा इस मुर्ती के सामने रखा गया है. जब वे अपने अंतिम लघु-लेखों में से एक, ग्रीन तारा और चौथा लक्षण लिख रहे थे, उस वक्त स्वयं संघरक्षितजी ने एक प्रकार के अर्पण के रूप में उसे वहां रख दिया था. यह लेख दिसंबर 2017 - जनवरी 2018 के दरमियान लिखा गया था.