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शयनकक्ष में व्यक्तिगत पूजास्थान

वस्तु का स्थान : शयनकक्ष

संघरक्षितजी के शयनकक्ष में स्थित उनके निजी पूजास्थान मध्य में मंजुघोष की प्रतिमा है, जो उनके आध्यात्मिक जीवन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. अपनी मृत्यु से दो वर्ष पूर्व, उन्होंने लिखा था:

मंजुघोष स्तुति साधना के अभ्यास के माध्यम से मैं इस प्रतिमा से पहले से ही परिचित था, लेकिन सुरंगम समाधि सूत्र पढ़ने पर मुझे उनकी उपस्थिति और उनके वास्तविक स्वरूप का और भी अधिक स्पष्ट बोध हुआ. वे धर्म नियम के साक्षात अवतार थे और इसी रूप में उनकी पूजा और ध्यान किया जाना चाहिए.

अधिष्ठान लेखन में 'परमार्थ को पत्र के रूप में एक स्वप्न-सह-स्मरण' से,

https://www.sangharakshita.org/downloads/new-writings-urgyen-sangharakshita.pdf

यह प्रतिमा तीन छोटे, हाथ से टाइप किए गए, हाथ से सिले हुए ग्रंथों के ऊपर विराजमान है, संघरक्षितजी ने कलिम्पोंग में इसे बनाया था. इनमें से दो ग्रंथों में तिब्बती न्यिंग्मा परंपरा के तीन धर्मपालों की प्रार्थनाएँ हैं. (सामने की दीवार पर टँगा छोटा थंग्का इन तीन प्रतिमाओंको दर्शाता है - नीचे देखें.) शेष एक उन पंक्तियों के बारे में है जो जम्यांग खेंत्से रिम्पोचे ने 1957 में संघरक्षितजी के मंजुघोष स्तुति साधना में दीक्षा के अवसर पर लिखी थी. परमार्थ को याद है कि संघरक्षितजी ने 2013 की शुरुआत में, बीमारी के एक बहुत ही कठिन दौर में, अधिष्ठान में स्थानांतरित होने के तुरंत बाद, उन्हें अभिलेखागार से निकालकर पुजास्थान में स्थापित करने का अनुरोध किया था.

संघरक्षितजी के पुजास्थान की अन्य आकृतियाँ छोटी बुद्ध प्रतिमाएँ हैं जिन्हें भारत से आने वाले पर्यटक समय-समय पर उपहार के रूप में लाते थे. आप देखेंगे कि संघरक्षितजी ने उन्हें पाँच बुद्ध मंडल की रचना में रखा था, जिसके बीच में एक छोटी स्पेनिश टाइल पर एक सुनहरा सिंह अंकित था. पूजास्थान के ऊपर आपको एक नक्काशीदार लकड़ी का सिर दिखाई देगा. उसके चेहरे के भाव संघरक्षितजी को चार महाराजाओं में से एक के चेहरे के भाव की याद दिलाते थे, जो उन्होंने एक दृष्टांत में देखे थे. यह सिर धम्मचारी नित्यबंधु की ओर से दिया उपहार था. नित्यबंधु 2003 से बर्मिंघम के मध्यमलोक में संघरक्षितजी के साथ रहते थे. उन्हें 2004 में संघरक्षितजी द्वारा दीक्षा दी गई थी और 2008 में वे क्राकोव में एक त्रिरत्न बौद्ध केंद्र, संघलोक की स्थापना करने के लिए अपने मूल पोलैंड लौट आए.

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