चीनी मिट्टी के हजार भुजा वाले अवलोकितेश्वर
अनिवार्य रूप से, कई प्रारंभिक संघ सदस्य संपर्क में नहीं रहें. संघरक्षितजी ने अपना काम बिना किसी डर के जारी रखा.
नागबोधि एक प्रारंभिक संघ सभा के बारे में लिखते हैं:
'शायद, उस सप्ताहांत के दौरान उन्होंने पहली बार संघ के लिए एक प्रतीक प्रस्तावित किया था: करुणा के बोधिसत्व, 1,000 भुजाओं वाले अवलोकितेश्वर. अवलोकितेश्वर दुनिया की चीखों और प्राणियों की ज़रूरतों के प्रति सजग हैं. वे प्रज्ञा और करुणा के परिपूर्ण एकता के प्रतीक हैं. उस को दुनिया में तब कार्यान्वित किया जा सकता है जब एक प्रभावी आध्यात्मिक संघ बोधिचित्त को दुनिया में जीवित करता है. उनके ग्यारह सिर मदद की ज़रूरत वाले लोगों के लिए ब्रह्मांड का अवलोकन करते हैं, जबकि उनकी 1,000 भुजाएँ उन सभी साधनों, प्रतिभाओं या गुणों को धारण करती हैं जो उनकी ज़रूरतों को पूरा कर सकती हैं. संघरक्षितजी की दृष्टि में हम संघ के सदस्य वह 1,000 भुजाएँ थे, या होंगे: समान उद्देश्य से बंधा हुआ, प्रेरित व्यक्तियों का एक सामंजस्यपूर्ण समाज, जिनमें से प्रत्येक अपने पास जो भी कौशल या गुण है, उनके साथ दुनिया तक पहुँच रहा था.’
The Boy, The Monk, The Man, p.226
 
                         
            
              
            
            
          
               
            
              
            
            
          
             
            
              
            
            
          
              