सुनहरे केसा के टुकड़े

गौतमी का संघरक्षितजी से नए आंदोलन के शुरुआती दिनों में ही परिचय हुआ था. और जब उन्होंने संघ के पहले सदस्यों के लिए चिवर के विकल्प के बारे में सोचा, जिनकी दीक्षा ‘भिक्षु और न ही उपासक’ होनी थी; उनके मन में गौतमी का खयाल था. दुसरी ओर जब यह खयाल उनकी अपनी ओर आता है, तो वे स्वयं, नए संघ के संस्थापक के रूप में, एक पुल का कार्य करते है. पारंपरिक बौद्ध धर्म, जिसमें उन्हें अठारह साल पहले दीक्षा दी गई थी और एक नए प्रकार की दीक्षा ईन दोनों को जोडनेवाला पूल. गौतमी लिखती हैं:

'मेरे सिलाई बॉक्स के निचले हिस्से में पीले चीनी रेशम के टुकड़ों का एक छोटा सा ढेर है जो भंते के पहले केसा के अवशेष हैं. यह केसा मैने उनके लिए बनाया था. हम केसा को डिज़ाइन कर रहे थे और विभिन्न सामग्रियों और पैटर्न को आज़मा रहे थे - उन्होंने पहले दीक्षार्थियों के लिए सफ़ेद मूर पैटर्न को चुना - और यह कपडा वे मेरे पास लेकर आए - मुझे लगता है कि यह एक छोटी सी स्लीवलेस जैकेट थी - जिसे उनके एक पूजनीय शिक्षक ने पहना था. मुझे अब याद नहीं है कि कौन से, लेकिन यह स्पष्ट रूप से उनके लिए बहुत मायने रखता था. उन्होने पूछा कि क्या मैं इस सामग्री से केसा बना सकती हूँ और मैंने बना दिया. जब मैंने उसे दिखाया तो उन्होने कहा "लेकिन तुमने इसे धोया है!" और मैंने कहा कि कुछ बनाने से पहले ऐसा करना सामान्य बात है. उन्होने कहा "तिब्बत में उन्होंने इसे सिर्फ़ ब्रेडक्रंब से (रोटी के टुकडों से ) रगड़ दिया होता !" और मैंने कहा "अच्छा, मुझे यह कैसे पता चलता? अगर तुम नहीं चाहते थे कि इसे धोया जाए तो तुम्हें ऐसा कहना चाहिए था; मैं दिमाग पढ़ने वाली तो नहीं हूँ. वैसे भी अब यह हो चुका है और मैं इसे वापस नहीं कर सकती" और दोनों मौन हो गए. लेकिन बहुत समय बाद मुझे खयाल आया कि उन्हें कैसे पता चला कि मैंने इसे धोया है, क्योंकि मुझे उन्हें यह बताने का कभी ख़याल ही नहीं आया था. शायद कुछ ऐसी सुगंध या आध्यात्मिक प्रकृति उसमें होगी जिसे मैंने अनजाने में हमेशा के लिए धो दिया था !’

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